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Friday, June 30, 2017

WHAT IS GST (IN HINDI) संक्षेप में ...


  आखीरकार लागू हो गया “GST” 



नमस्ते भाइयों, 
तो आखीरकार लागू हो गया  “GST”

पिछले कई दिनों से आपने एक शब्द बार बार सुना होगाऑफिस में, बसों में, ट्रेन में सफर करते वक्त यह शब्द बार-बार हमारे कानों पर गूंज रहा है वह शब्द है जीएसटी कोई कहता है टैक्स है, कोई कहता है रेवलुएशन है, कोई कहता है अच्छा है, कोई कहता है पता नही ईतने सारे टैक्स है एक और सही |

तो आइए आज हम जानने की कोशिश करते हैं कि यह जीएसटी आखीर क्या हैआप कहेंगे जीएसटी  एक प्रकार का टैक्स है जैसे सर्विस टैक्स, इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स उसी तरह यह एक टैक्स है तो उसको लेकर इतना घमासान क्यों मचा हेतो दोस्तों जीएसटी बाकी टैक्स की तरह केवल एक साधारण टैक्स नहीं है यह अपने आप में एक रेवलुएशन है जिससे हमारे देशकी अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है|







 जीएसटी” के जरिए देश एक होने जा रहा है लेकिन कैसे ? आइए समझने की कोशिश करते हैं  

जीएसटी” का फुल फॉर्म है गुड्स एंड सर्विस टैक्स वस्तुएं एवं सेवाएं कर.

फिलहाल हमारे देश की कर प्रणाली में मुख्य दो प्रकार के टैक्स है डायरेक्ट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्स, डायरेक्ट टैक्स जो है वह हमारे इनकम टैक्स जुड़ा है जिसका जीएसटी से कोई लेना-देना नहीं है किंतु जो इनडायरेक्ट टैक्स है वह कन्वर्ट हो कर जीएसटी बनेगा. 






हमारे कर प्रणाली में तकरीबन 18 से 19 प्रकार के इनडायरेक्ट टैक्सेस मौजूद है जैसे 

सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स, वेट, लक्जरी  टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, एंट्री टैक्स, मनोरंजन टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, और उनमें से कुछ टैक्स सेंट्रल गवर्नमेंट को पे करना पड़ता  है तो कुछ टेक्स्ट स्टेट गवर्नमेंट को पे करना पड़ता है जोकि जीएसटी लागू होने के बाद अब नहीं पड़ेगा जीएसटी एक ही बार जमा करना है. 





जीएसटी लागू होने से क्या होगा इसके फलस्वरुप कौन सी चीजें सस्ती होंगी और कौन सी महंगी ?

तमाम अटकलोंके बिच सरकार द्वारा दर का स्लैब बनाया गया  और वह है 0% 5% 12% 18% 28% , आपको बता दें कि पेटरोल जन्य सेवाए एवं वस्तुओं को GST से दुर रखा गया है। तो आईये जानते है कौनसी सेवाए एवं वस्तुएं कौनसी स्लैब मे रखी गई है? 

0% GST Rates Items
गेहूं, चावल, दूसरे अनाज, आटा, मैदा, बेसन, चूड़ा, मूड़ी (मुरमुरे), खोई, ब्रेड, गुड़, दूध, दही, लस्सी, खुला पनीर, अंडे, मीट-मछली, शहद, ताजी फल-सब्जियां, प्रसाद, नमक, सेंधा/काला नमक, कुमकुम, बिंदी, सिंदूर, चूड़ियां, पान के पत्ते, गर्भनिरोधक, स्टांप पेपर, कोर्ट के कागजात, डाक विभाग के पोस्टकार्ड/लिफाफे, किताबें, स्लेट-पेंसिल, चॉक, समाचार पत्र-पत्रिकाएं, मैप, एटलस, ग्लोब, हैंडलूम, मिट्टी के बर्तन, खेती में इस्तेमाल होने वाले औजार, बीज, बिना ब्रांड के ऑर्गेनिक खाद, सभी तरह के गर्भनिरोधक, ब्लड, सुनने की मशीन।

5% GST Rates Items
ब्रांडेड अनाज, ब्रांडेड आटा, ब्रांडेड शहद, चीनी, चाय, कॉफी, मिठाइयां, *खाद्य तेल,* स्किम्ड मिल्क पाउडर, बच्चों के मिल्क फूड, रस्क, पिज्जा ब्रेड, टोस्ट ब्रेड, पेस्ट्री मिक्स, प्रोसेस्ड/फ्रोजन फल-सब्जियां, पैकिंग वाला पनीर, ड्राई फिश, न्यूजप्रिंट, ब्रोशर, लीफलेट, राशन का केरोसिन, रसोई गैस, झाडू, क्रीम, *मसाले,* जूस, साबूदाना, जड़ी-बूटी, लौंग, दालचीनी, जायफल, जीवन रक्षक दवाएं, स्टेंट, ब्लड वैक्सीन, हेपेटाइटिस डायग्नोसिस किट, ड्रग फॉर्मूलेशन, क्रच, व्हीलचेयर, ट्रायसाइकिल, लाइफबोट, हैंडपंप और उसके पार्ट्स, सोलर वाटर हीटर, रिन्यूएबल एनर्जी डिवाइस, ईंट, मिट्टी के टाइल्स, साइकिल-रिक्शा के टायर, कोयला, लिग्नाइट, कोक, कोल गैस, सभी ओर (अयस्क) और कंसेंट्रेट, राशन का केरोसिन, रसोई गैस।

12% GST Rates Items
 नमकीन, भुजिया, *बटर ऑयल, घी*, मोबाइल फोन, ड्राई फ्रूट, फ्रूट और वेजिटेबल जूस, सोया मिल्क जूस और दूध युक्त ड्रिंक्स, प्रोसेस्ड/फ्रोजन मीट-मछली, अगरबत्ती, कैंडल, आयुर्वेदिक-यूनानी-सिद्धा-होम्यो दवाएं, गॉज, बैंडेज, प्लास्टर, ऑर्थोपेडिक उपकरण, टूथ पाउडर, सिलाई मशीन और इसकी सुई, बायो गैस, एक्सरसाइज बुक, क्राफ्ट पेपर, पेपर बॉक्स, बच्चों की ड्रॉइंग और कलर बुक, प्रिंटेड कार्ड, चश्मे का लेंस, पेंसिल शार्पनर, छुरी, कॉयर मैट्रेस, एलईडी लाइट, किचन और टॉयलेट के सेरेमिक आइटम, स्टील, तांबे और एल्यूमीनियम के बर्तन, इलेक्ट्रिक वाहन, साइकिल और पार्ट्स, खेल के सामान, खिलौने वाली साइकिल, कार और स्कूटर, आर्ट वर्क, मार्बल/ग्रेनाइट ब्लॉक, छाता, वाकिंग स्टिक, फ्लाईएश की ईंटें, कंघी, पेंसिल, क्रेयॉन।

18% GST Rates Items
हेयर ऑयल, साबुन, टूथपेस्ट, कॉर्न फ्लेक्स, पेस्ट्री, केक, जैम-जेली, आइसक्रीम, इंस्टैंट फूड, शुगर कन्फेक्शनरी, फूड मिक्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स कंसेंट्रेट, डायबेटिक फूड, निकोटिन गम, मिनरल वॉटर, हेयर ऑयल, साबुन, टूथपेस्ट, कॉयर मैट्रेस, कॉटन पिलो, रजिस्टर, अकाउंट बुक, नोटबुक, इरेजर, फाउंटेन पेन, नैपकिन, टिश्यू पेपर, टॉयलेट पेपर, कैमरा, स्पीकर, प्लास्टिक प्रोडक्ट, हेलमेट, कैन, पाइप, शीट, कीटनाशक, रिफ्रैक्टरी सीमेंट, बायोडीजल, प्लास्टिक के ट्यूब, पाइप और घरेलू सामान, सेरेमिक-पोर्सिलेन-चाइना से बनी घरेलू चीजें, कांच की बोतल-जार-बर्तन, स्टील के ट-बार-एंगल-ट्यूब-पाइप-नट-बोल्ट, एलपीजी स्टोव, इलेक्ट्रिक मोटर और जेनरेटर, ऑप्टिकल फाइबर, चश्मे का फ्रेम, गॉगल्स, विकलांगों की कार।

28% GST Rates Items 
कस्टर्ड पाउडर, इंस्टैंट कॉफी, चॉकलेट, परफ्यूम, शैंपू, ब्यूटी या मेकअप के सामान, डियोड्रेंट, हेयर डाइ/क्रीम, पाउडर, स्किन केयर प्रोडक्ट, सनस्क्रीन लोशन, मैनिक्योर/पैडीक्योर प्रोडक्ट, शेविंग क्रीम, रेजर, आफ्टरशेव, लिक्विड सोप, डिटरजेंट, एल्युमीनियम फ्वायल, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर, डिश वाशर, इलेक्ट्रिक हीटर, इलेक्ट्रिक हॉट प्लेट, प्रिंटर, फोटो कॉपी और फैक्स मशीन, लेदर प्रोडक्ट, विग, घड़ियां, वीडियो गेम कंसोल, सीमेंट, पेंट-वार्निश, पुट्टी, प्लाई बोर्ड, मार्बल/ग्रेनाइट (ब्लॉक नहीं), प्लास्टर, माइका, स्टील पाइप, टाइल्स और सेरामिक्स प्रोडक्ट, प्लास्टिक की फ्लोर कवरिंग और बाथ फिटिंग्स, कार-बस-ट्रक के ट्यूब-टायर, लैंप, लाइट फिटिंग्स, एल्युमिनियम के डोर-विंडो फ्रेम, इनसुलेटेड वायर-केबल।


क्या फायदा होगा ?

इस विश्लेषण के बाद आप कहेंगे इससे देश को या आम जनता को क्या फायदा होगा ?

# एक देश एक टैक्स - दोस्तों जीएसटी पूरे देश के लिए एक टैक्स प्रणाली होगी पूरे देश में एक ही टैक्स लगेगा जिसकी बदौलत हर राज्य में एक वस्तू एक ही दाम में मिलेगी आज एक वस्तू दिल्ली में अलग कीमत में महाराष्ट्र में अलग कीमत में गुजरात में अलग कीमत में तो कर्नाटक में अलग कीमत में मिलती है लेकीन जीएसटी के लागू होने से एक ही वस्तु या एक ही सेवा हर राज्य में एक ही दाम में मिलेगी







# नो टेक्स्ट ऑन टैक्स - अगला फायदा यह होगा दोस्तों कई चीजें वस्तुए सेवाएं इस तरह की है जिन पर उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले कई तरह के टैक्स लगते आ रहें थे वह चीजें वस्तुएं जिन जिन प्रोसेस से गुजरती थी वहां पर जो जो टैक्स लाइबल होता था वह पे करना पड़ता था और सभी तरह के टैक्स पे करते करते उसका दाम से 10 गुना बढ़ जाता था जीएसटी के लगने से जो टैक्स पर टैक्स लगता था वह बंद हो जाएगा जाहिर है वस्तुओं की कीमतें कुछ हद तक कम हो जाएंगी





# पेपर वर्क कम होगा भाग दौड़ कम होगी फिलहाल जितने प्रकार के टैक्स है उतनेही डिपार्टमेंट है उतनाही डॉक्यूमेंटेशन करना पडता है कुछ टैक्स एस ऑनलाइन भरने पढ़ते हैं कुछ टैक्स एडवांस पे करने पड़ते हैं कुछ टेक्स्ट पे करने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं किंतू जीएसटी लागू होने से सारी भागदौड़ बंद हो जाएगी जीएसटी का ऑनलाइन पोर्टल बनने जा रहा है उस पर काम चालू है जैसे ही वह लागू हो जाएगा हम ऑनलाइन रजिस्टर करके एक ही बार में जो भी टैक्स का अमाउंट है वह जमा करके निश्चिंत हो सकते हैं






# सबसे महत्वपूर्ण हमारे समय और पैसो की बचत हो यानी यह केवल एक काम टैक्स नहीं है बल्कि अर्थव्यवस्था में रिवोल्यूशन है उम्मीद है हमारी अर्थव्यवस्था मजबुत होनेमे जीएसटी अहम भुमीका निभाएगा जाते जाते यह बतादुं दुनियाके 165 देशोंमें जीएसटी कई सालोंसे लागु हे कहीं 9 परसेंट तो कहीं 35 परसेंट यहां तक की पाकीस्तानमें भी यह लागु है जो है 18 परसेंट.
अतह अंत भला तो सब भला यही सोचकर हमें बदलाव का स्वीकार करना चाहीए 
जय हिंद!..

टिपण्णी: ऊपरोक्त जानकारी ऊपलब्ध स्त्रोतोंसे संकलन करके प्रस्तुत की हे.

।। पंचरत्न हरिपाठ ।।




।। पंचरत्न हरिपाठ ।।
श्री संत ज्ञानॆश्वरमहाराज, श्री संत तुकाराममहाराज, श्री संत नामदॆवमहाराज, 
श्री संत ऎकनाथमहाराज व श्री संत निवृत्तिमहाराजकृत हरिपाठ.

।। जय जय राम कृष्णहरि ।।










।। जय जय राम कृष्णहरि ।।।। जय जय राम कृष्णहरि ।।। जय जय राम कृष्णहरि ।।
।। जय जय राम कृष्णहरि ।।।। जय जय राम कृष्णहरि ।।। जय जय राम कृष्णहरि ।।
।। जय जय राम कृष्णहरि ।।।। जय जय राम कृष्णहरि ।।। जय जय राम कृष्णहरि ।।
*****

श्री संत निवृत्तिमहाराजकृत हरिपाठ




।। श्री संत निवृत्तिमहाराजकृत हरिपाठ ।।
हरिविण दैवत नाहीं पैं अनुचित्तीं । अखंड श्रीपती नाम वाचॆ ।। १।।
रामकृष्ण मूर्ति या जपा आवृत्ती । नित्य नामॆं तृप्ती जाली आम्हां ।। २।।
नामाचॆनि स्मरणॆं नित्य पैं सुखांत । दुजीयाची मात नॆणॊ आम्ही ।। ३।।
निवृत्ति जपतु अखंड नामावळी । हृदयकमळीं कॆशीराज ।। ४।।
हरिविण चित्तीं न धरीं विपरीत । तरताती पतित रामनामॆं ।। १।।
विचारुनी पाहा ग्रंथ हॆ अवघॆ । जॆथॆं तॆथॆं सांग रामनाम ।। २।।
व्यासादिक भलॆ रामनामापाठीं । नित्यता वैकुंठीं तयां घर ।। ३।।
शुकादिक मुनि विरक्त संसारीं । रामनाम निर्धारीं उच्चारिलॆं ।। ४।।
चॊरटा वाल्मीकि रामनामीं रत । तॊही ऎक तरत रामनामीं ।। ५।।
निवृत्ति साचार रामनामी दृढ । अवघॆचि गूढ उगविलॆ ।। ६।।
हरिमार्ग सार यॆणॆंचि तरिजॆ । यॆरवीं उभिजॆ संसार रथ ।। १।।
जपतां श्रीहरी मॊक्ष नांदॆ नित्य । तरॆल पैं सत्य हरि नामॆं ।। २।।
काय हॆं ऒखद नामनामामृत । हरिनामॆं तृप्त करी राया ।। ३।।
निवृत्ति साचार हरिनाम जपत । नित्य हृदयांत हरी हरी ।। ४।।
ऎकॆविण दुजॆं नाहीं पैं यॆ सृष्टी । हॆं ध्यान किरीटी दिधलॆं हरी ।। १।।
नित्य या श्रीहरि जनीं पैं भरला । द्वैताचा अबॊला तया घरीं ।। २।।
हरीविणॆं दॆवॊ नाहीं नाहीं जनीं । अखंड पर्वणी हरी जपतां ।। ३।।
निवृत्ति साकार हरिनाम पाठ । नित्यता वैकुंठ हरिपाठ ।। ४।।
जपतां कुंटिणी उतरॆ विमान । नाम नारायण आलॆं मुखा ।। १।।
नारायण नाम तारक तॆं आम्हां । नॆणॊं पैं महिमा अन्य तत्त्वीं ।। २।।
तरिलॆ पतित नारायण नामॆं । उद्धरिलॆ प्रॆमॆं हरिभक्त ।। ३।।
निवृत्ति उच्चार नारायण नाम । दिननिशी प्रॆम हरी हरी ।। ४।।
ऎक तत्त्व हरि असॆ पैं सर्वत्र । ऐसॆं सर्वत्र शास्त्र बॊलियलॆं ।। १।।
हरिनामॆं उद्धरॆ हरिनामॆं उद्धरॆं । वॆगीं हरि त्वरॆं उच्चारी जॊ ।। २।।
जपता पैं नाम यमकाळ कांपॆ ।  हरी हरी सॊपॆं जपिजॆ सुखॆं ।। ३।।
निवृत्ति म्हणॆ हरिनामपाठ जपा । जन्मांतर खॆपा अंतरती ।। ४।।
गगनींचा घन जातॊ पैं वारॆन । अवचिता पतन अधॊपंथॆं ।। १।।
अध ऊर्ध्व हरि भाविला दुसरी । प्रपंचबॊहरी आपॊआप ।। २।।
निवृत्ति म्हणॆ जन हरीचॆं स्वरूप । कळाचॆं पैं माप हरिनाम ।। ३।।
सृष्टीच्या संमता सुरतरु तरु । बॊलिला विस्तारु धर्मशास्त्रीं ।। १।।
नॆघॊं हॆं तरु प्रपंचपरिवारु । प्रत्यक्ष ईश्वरू पुरॆ आम्हा ।। २।।
निवृत्ति निवांत हरीच सॆवित । दॊ अक्षरीं उचित इंद्रिया ।। ३।।
सर्वांभूतीं दया शांती पैं निर्धार । यॊग साचार जनीं इयॆ ।। १।।
न लगॆ मुंडण काया हॆं दंडणॆं । अखंड कीर्तन स्मरॆ हरी ।। २।।
शिव जाणॆं जीवीं रक्षला चैतन्य । हॆ जीवीं कारुण्य सदा भावीं ।। ३।।
गगनीं सूर्य तपॆ अनंत तारा लॊपॆ । ऎकची स्वरूपॆं आत्मा तैसा ।। ४।।
उगवला कळीं उल्हासु कमळीं । तैसा तॊ मंडली चंद्र लॆखा ।। ५।।
निवृत्तिमंडळ अमृत सकळ । घॆतलॆं रसाळ हरिनाम ।। ६।।
१०
जयाचॆनि सुखॆं चळत पैं विश्व । नांदॆ जगदीश सर्वा घटीं ।। १।।
त्याचॆं नाम हरी त्याचॆं नाम हरी । प्रपंचबॊहरी कल्पनॆची ।। २।।
शांति त्याची नारी प्रकृति विकारी । उन्मनी बॊवरी हृदयांतु ।। ३।।
निवृत्तिदॆवीं साधिली राणीव । हरपलॆ भाव इंद्रियांचॆ ।। ४।।
११
हरीविण भावॊ वायांचि संदॆहॊ । हरि दॆवॊ दॆवॊ आहॆ सत्य ।। १।।
हरी हरी वाचॆ ऐसॆं जपा साचॆं । नाहीं त्या यमाचॆ मॊहजाळ ।। २।।
हरीविण सार नाहीं पैं निर्धार । हरिविण पार न पाविजॆ ।। ३।।
निवृत्ति श्रीहरि चिंती निरंतरीं । हरि ऎक अंतरीं सर्वीं नांदॆ ।। ४।।
१२
ध्यान धरा हरी विश्रांति नामाची । विठ्ठलींच साची मनॊवृत्ति ।। १।।
ध्यानॆविण मन विश्रांतिविण स्थान । सूर्याविण गगन शून्य दिसॆ ।। २।।
नलगॆ साकार विठ्ठल मनॊवृत्ति । प्रपंच समाप्ति ती अक्षरीं ।। ३।।
निवृत्ति समता विठ्ठल कीर्तन । करितां अनुदीन मन मॆळॆ ।। ४।।
१३
प्रपंचाची वस्ती व्यर्थ काया काज । आम्हां बॊलता लाज यॆत सयॆ ।। १।।
काय करूं हरी कैसां हा गवसॆ । चंद्रसूर्य अंवसॆ ऎकसूत्र ।। २।।
तैसॆं करूं मन निरंतर ध्यान । उन्मनी साधन आम्हां पुरॆ ।। ३।।
निवृत्ति हरिपाठ नाम हॆंचि वाट । प्रपंच फुकट दिसॆ आम्हां ।। ४।।
१४
लटिका संसार वाढविसी व्यर्थ । विषयाचा स्वार्थ क्षणॆं करीं ।। १।।
नकॊ शिणॊं दुःखॆ का भरिसी शॊकॆं । ऎकतत्त्वॆं ऎकॆं मन लावीं ।। २।।
लावीं उन्मनीं टाळी टाळिसी नॆई बाळी । अखंड वनमाळी हृदयवटी ।। ३।।
निवृत्ति चपळ राहिला अचळ । नाहीं काळ वॆळ भजतां हरी ।। ४।।
१५
कल्पना काजळी कल्पिलॆ कवळी । कैसॆनि जवळीं दॆव हॊय ।। १।।
टाकी हॆ कल्पना दुरित वासना । अद्वैत नारायणा भजॆं कां रॆ ।। २।।
मॊहाच्या जीवनीं नकॊ करूं पर्वणी । चिंती कां आसनीं नारायण ।। ३।।
निवृत्ति अवसरु कृष्णनाम पैं सारु । कल्पना साचारु हरी झाला ।। ४।।
१६
मॊहाचॆनि दॆठॆं मॊहपाश गिळी । कैसॆनि गॊपाळीं सरता हॊय ।। १।।
मॊहाचॆनि मॊहनॆं चिंतितां श्रीहरी । वाहिजु भीतरीं अवघा हॊय ।। २।।
दिननिशीं नाम जपतां श्रीहरीचॆं । मग या मॊहाचॆं मॊहन नाहीं ।। ३।।
निवृत्ति आगम मॊहन साधन । सर्व नारायण ऎका तत्त्वॆं ।। ४।।
१७
तिमिरपडळॆं प्रपंच हा भासॆ । झाकॊळला दिसॆ आत्मनाथ ।। १।।
हरीविण दुजॆं चिंतितां निभ्रांत । अवघॆंचि दिसत माया भ्रम ।। २।।
सांडूनि तिमिर सर्व नारायण । हॆंचि पारायण नित्य करी ।। ३।।
निवृत्ति सज्जन अवघा आत्मराज । ऎकतत्त्व बीज नाम लाहॊ ।। ४।।
१८
प्रवृत्ति निवृत्ति या दॊन्ही जनीं । वनीं काज करुनी असती ।। १।।
नारायण नाम जपतांचि दॊन्ही । ऎकतत्त्वीं करणी सांगिजॆ गुज ।। २।।
आशॆचॆ विलास गुंफॊनिया महिमा । सत्त्वीं तत्त्व सीमा निजज्ञानॆ ।। ३।।
निवृत्ति तत्त्वतां मनाचॆ मॊहन । नित्य समाधानॆं रामनामॆं ।। ४।।
१९
क्षॆत्राचा विस्तार क्षॆत्रज्ञवृत्ति । अवघी हॆ क्षिती ऎकरूपॆं ।। १।।
शांति दया पैसॆ क्षमा जया रूप । अवघॆची स्वरूप आत्माराम ।। २।।
निंदा द्वॆष चॆष्टा अभिमान भाजा । सांडूनियां भजा कॆशवासी ।। ३।।
निवृत्ति तिष्ठतु ऎकरूप चित्त । अवघींच समस्त गिळियॆलीं ।। ४।।

२०
आम्ही चकॊर हरि चंद्रमा । आम्ही कळा तॊ पौर्णिमा ।। १।।
कैसा बाहिजु भीतरी हरी । बिंब बिंबला ऎक सूत्रीं ।। २।।
आम्ही दॆही तॊ आत्मा । आम्ही विदॆही तॊ परमात्मा ।। ३।।
ऐक्यपणॆं सकळ वसॆ । द्वैतबुद्धी कांहीं न दिसॆ ।। ४।।
निवृत्ति चातक इच्छिताहॆ । हरिलागीं बरॆं तॆं पाहॆ ।। ५।।
२१
ज्याचॆ मुखीं नाम अमृतसरिता । तॊचि ऎक पुरता घटु जाणा ।। १।।
नामचॆनि बळॆ कळिकाळ आपणा । ब्रह्मांडा यॆसणा तॊचि हॊय ।। २।।
न पाहॆ तयाकडॆ काळ अवचिता । नामाची सरिता जया मुखीं ।। ३।।
निवृत्ति नामामृत उच्चारी रामनामॆ । नित्य परब्रह्म त्याचॆ घरीं ।। ४।।
२२
नित्य नाम वाचॆ तॊचि ऎक धन्य । त्याचॆं शुद्ध पुण्य इयॆ जनीं ।। १।।
रामनामकीर्ति नित्य मंत्र वाचॆ । दहन पापाचॆं ऎका नामॆं ।। २।।
ऐसा तॊ नित्यता पुढॆ तत्त्व नाम । नाहीं तयासम दुजॆं कॊणी ।। ३।।
निवृत्ति अव्यक्त रामनाम जपॆ । नित्यता पैं सॊपॆं रामनाम ।। ४।।
२३
अखंड जपतां रामनाम वाचॆ । त्याहूनी दैवाचॆ कॊण भूमी ।। १।।
अमृतीं राहिलॆ कैचॆं मरण । नित्यता शरण हरिचरणा ।। २।।
नाममंत्र रासी अनंत पुण्य त्यासी । नाहीं पैं भाग्यासी पार त्याच्या ।। ३।।
निवृत्ति म्हणॆ सार रामनाम मंत्र । कैंचा त्यासी शत्रु जिती जनीं ।। ४।।
२४
नाम नाहीं वाचॆ तॊ नर निर्दैव । कैसॆनि दॆव पावॆल तया ।। १।।
जपॆ नाम वाचॆं रामनाम पाठॆं । जाशील वैकुंठॆ हरी म्हणता ।। २।।
न पाहॆ पैं दृष्टीं कळिकाळ तुज । रामनाम बीज मंत्रसार ।। ३।।
निवृत्ति म्हणॆ नाम जपावॆं नित्यता । आपणचि तत्त्वतां हॊईल हरी ।। ४।।
२५
नामाचॆनि बळॆं तारिजॆ संसार । आणिक विचार करूं नकॊ ।। १।।
नाम जप वॆगीं म्हणॆ हरी हरी । प्रपंच बॊहरी आपॊआप ।। २।।
नित्यता भजन दॆवद्विज करी । नाम हॆ उcचारि रामराम ।। ३।।
निवृत्ति जपतु राम राम वाचॆ । दहन पापाचॆं आपॊआप ।। ४।।

।। इति श्रीनिवृत्तिनाथ हरिपाठ समाप्त  ।।

*****

श्री संत ऎकनाथमहाराजकृत हरिपाठ




।। श्री संत ऎकनाथमहाराजकृत हरिपाठ ।।
हरीचिया दासा हरि दाही दिशा । भावॆं जैसा तैसा हरि ऎक ।। १।।
हरी मुखीं गातां हरपली चिंता । त्या नाहीं मागुता जन्म घॆणॆं ।। २।।
जन्म घॆणॆं लागॆ वासनॆच्या संगॆ । तॆचि झालीं अंगॆं हरिरूप ।। ३।।
हरिरूप झालॆं जाणीव हरपलॆ । मीतूंपणा गॆलॆं हरीचॆ ठायीं ।।४।।
हरिरूप ध्यानीं हरिरूप मनीं । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।
हरि बॊला हरि बॊला नातरी अबॊला । व्यर्थ गलबला करूं नका ।। १।।
नकॊ अभिमान नकॊ नकॊ मान । सॊडीं मीतूंपण तॊचि सुखी ।। २।।
सुखी त्याणॆं व्हावॆं जगा निववावॆं । अज्ञानी लावावॆ सन्मार्गासी ।। ३।।
मार्ग जया कळॆ भावभक्तिबळॆं । जगाचियॆ मॆळॆ न दिसती ।। ४।।
जनीं वनीं प्रत्यक्ष लॊचनीं । ऎका जनार्दनीं ऒळखिलॆं ।। ५।।
ऒळखिला हरी धन्य तॊ संसारी । मॊक्ष त्याचॆ घरीं सिद्धीसहित ।। १।।
सिद्धी लावी पिसॆं कॊण तया पुसॆ । नॆलॆं राजहंसॆं पाणी काय ।। २।।
काय तॆं कराव्ऎं संदॆहीं निर्गुण । ज्ञानानॆं सगुण ऒस कॆलॆं ।। ३।।
कॆलॆं कर्म झालॆं तॆंचि भॊगा आलॆं । उपजलॆ मॆलॆ ऐसॆ किती ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं नाहीं यातायाती । सुखाची विश्रांती हरीसंगॆं ।। ५।।
जॆं जॆं दृष्टी दिसॆ तॆं तॆं हरिरूप । पूजा ध्यान जप त्यासी नाहीं ।। १।।
वैकुंठ कैलासी तीर्थक्षॆत्रीं दॆव । तयाविण ठाव रिता कॊठॆं ।। २।।
वैष्णवांचॆं गुह्य मॊक्षांचा ऎकांत । अनंतासी अंत पाहतां नाहीं ।। ३।।
आदि मध्य अवघा हरि ऎक । ऎकाचॆ अनॆक हरि करी ।। ४।।
ऎकाकार झालॆ जीव दॊन्ही तिन्ही । ऎका जनार्दनीं ऐसॆं कॆलॆं ।। ५।।
नामाविण मुख सर्पाचॆं तॆं बीळ । जिव्हा काळसर्प आहॆ ।। १।।
वाचा नव्हॆ लांब जळॊ त्याचॆं जिणॆं । यातना भॊगणॆं यमपुरीं ।। २।।
हरीविण कॊणी नाहीं सॊडविता । पुत्र बंधु कांता संपत्तिचॆ ।। ३।।
अंतकाळीं कॊणी नाहीं बा सांगाती । साधूचॆ संगतीं हरी जॊडॆ ।। ४।।
कॊटि कुळॆं तारी हरि अक्षरॆं दॊन्ही । ऎका जनार्दनीं पाठ कॆलीं ।। ५।।
धन्य माय व्याली सुकृताचॆं फळ । फळ निर्फळ हरीविण ।। १।।
वॆदांताचॆं बीज हरि हरि अक्षरॆं । पवित्र सॊपारॆं हॆंचि ऎक ।। २।।
यॊग याग व्रत नॆम दानधर्म । नलगॆ साधन जपतां हरि ।। ३।।
साधनाचॆं सार नाम मुखीं गातां । हरि हरि म्हणतां कार्यसिद्धी ।। ४।।
नित्य मुक्त तॊचि ऎक ब्रह्मज्ञानी । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।



बहुतां सुकृतॆं नरदॆह लाधला । भक्तीविण गॆला अधॊगती ।। १।।
पाप भाग्य कैसॆ न सरॆचि कर्म । न कळॆचि वर्म अरॆ मूढा ।। २।।
अनंत जन्मींचॆं सुकृत पदरीं । त्याचॆ मुखीं हरि पैठा हॊय ।। ३।।
राव रंक हॊ कां उंच नीच याती । भक्तीविण माती मुखीं त्याच्या ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं हरि हरि म्हणतां । मुक्ती सायुज्यता पाठी लागॆ ।। ५।।
हरिनामामृत सॆवी सावकाश । मॊक्ष त्याचॆ भूस दृष्टीपुढॆं ।। १।।
नित्य नामघॊष जयाचॆ मंदिरीं । तॆचि काशीपुरी तीर्थक्षॆत्र ।। २।।
वाराणसी तीर्थक्षॆत्रा नाश आहॆ । अविनाशासी पाहॆ नाश कैचा ।। ३।।
ऎका तासामाजीं कॊटि वॆळा सृष्टी । हॊती जाती दृष्टि पाहॆं तॊचि ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं ऐसॆं किती झालॆं । हरिनाम सॆविलॆं तॊचि ऎक ।। ५।।
भक्तीविण पशु कशासी वाढला । सटवीनॆ नॆला कैसा नाहीं ।। १।।
काय माय गॆली हॊती भूतापासीं । हरि न यॆ मुखासी अरॆ मूढा ।। २।।
पातकॆं करिता पुढॆं आहॆ पुसता । काय उत्तर दॆतां हॊशील तूं ।। ३।।
अनॆक यातना यम करवील । कॊण सॊडवील तॆथॆं तुजला ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं सांगताहॆं तॊंदॆं । आहा वाचा रडॆ बॊलतांचि ।। ५।।



१०
स्वहिताकारणॆं संगती साधूची । भावॆं भक्ति हरीची भॆटी तॆणॆं ।। १।।
हरि तॆथॆं संत संत तॆथॆं हरी । ऐसॆं वॆद चारी बॊलताती ।। २।।
ब्रह्मा डॊळसातॆं वॆदार्थ ना कळॆ । तॆथॆं हॆ आंधळॆ व्यर्थ हॊती ।। ३।।
वॆदार्थाचा गॊंवा कन्याअभिलाष । वॆदॆं नाहीं ऐसॆं सांगितलॆं ।। ४।।
वॆदांचीं हीं बीजाक्षरॆं हरी दॊनी । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।
११
सत्पद तॆं ब्रह्म चित्पद तॆं माया । आनंदपदीं जया म्हणती हरी ।। १।।
सत्पद निर्गुण चित्पद सगुण । सगुण निर्गुण हरिपायीं ।। २।।
तत्सदिति ऐसॆं पैल वस्तूवरी । गीतॆमाजी हरि बॊलियॆलॆ ।। ३।।
हरिपदप्राप्ती भॊळ्या भाविकांसी । अभिमानियांसी नर्कवास ।। ४।।
अस्ति भाति प्रिय ऐशीं पदॆं तिनी । ऎका जनार्दनीं तॆंचि झालॆं ।। ५।।
१२
नाकळॆ तॆं कळॆ कळॆ तॆं नाकळॆ । वळॆ तॆं ना वळॆं गुरुविणॆं ।। १।।
निर्गुण पावलॆं सगुणीं भजतां । विकल्प धरितां जिव्हा झडॆ ।। २।।
बहुरूपी घरी संन्यासाचा वॆष । पाहॊन तयास धन दॆती ।। ३।।
संन्याशाला नाहीं बहुरूपियाला । सगुणीं भजला तॆथॆं पावॆ ।।४।।
अद्वैताचा खॆळ दिसॆ गुणागुणीं । ऎका जनार्दनीं ऒळखिलॆं ।। ५।।



१३
ऒळखिला हरि सांठविला पॊटीं । हॊतां त्याची भॆटी दुःख कैंचॆं ।। १।।
नर अथवा नारी हॊ कां दुराचारी । मुखीं गातां हरि पवित्र तॊ ।। २।।
पवित्र तॆं कुळ धन्य त्याची माय । हरि मुखॆं गाय नित्य नॆमॆं ।। ३।।
काम क्रॊध लॊभ जयाचॆ अंतरीं । नाहीं अधिकारी ऐसा यॆथॆं ।। ४।।
वैष्णवांचॆं गुह्य काढिलॆं निवडुनी । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।
१४
हरि बॊला दॆतां हरि बॊला घॆतां । हांसतां खॆळतां हरि बॊला ।। १।।
हरि बॊला गातां हरि बॊला खातां । सर्व कार्य करितां हरि बॊला ।। २।।
हरि बॊला ऎकांतीं हरि बॊला लॊकांतीं । दॆहत्यागाअंतीं हरि बॊला ।। ३।।
हरि बॊला भांडतां हरि बॊला कांडतां । उठतां बैसतां हरि बॊला ।। ४।।
हरि बॊला जनीं हरि बॊला विजनीं । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।
१५
ऎक तीन पांच मॆळा पञ्चवीसांच । छत्तिस तत्त्वांचा मूळ हरि ।। १।।
कल्पना अविद्या तॆणॆ झाला जीव । मायॊपाधी शिव बॊलिजॆति ।। २।।
जीव शिव दॊन्ही हरिरूपीं तरंग । सिंधु तॊ अभंग नॆणॆं हरी ।। ३।।
शुक्तीवरी रजत पाहतां डॊळां दिसॆ । रज्जूवरी भासॆ मिथ्या सर्प ।। ४।।
क्षॆत्र\-क्षॆत्रज्ञातॆं जाणताती ज्ञानी । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।



१६
कल्पनॆपासूनी कल्पिला जॊ ठॆवा । तॆणॆं पडॆ गॊंवा नॆणॆ हरी ।। १।।
दिधल्या वांचूनि फळप्राप्ति कैंची । इच्छा कल्पनॆची व्यर्थ बापा ।। २।।
इच्छावॆ तॆ जवळी चरण हरीचॆ । चरण सर्व नारायण दॆतॊ तुज ।। ३।।
न सुटॆ कल्पना अभिमानाची गांठी । घॆतां जन्म कॊटी हरि कैंचा ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं सांपडली खूण । कल्पना अभिमान हरि झाला ।। ५।।
१७
काय पद्मनीचॆ षंढासी सॊहळॆ । वांझॆसी दॊहाळॆ कैची हॊती ।। १।।
अंधापुढॆं दीप खरासी चंदन । सर्पासी दुधपान करूं नयॆ ।। २।।
क्रॊधि अविश्वासी त्यासी बॊध कैंचा । व्यर्थ आपुली वाचा शिणवूं नयॆ ।। ३।।
खळाची संगती उपयॊगासी न यॆ । आपणा अपाय त्याचॆ संगॆ ।। ४।।
वैष्णवीं कुपथ्य टाकिल वाळूनी । ऎका जनार्दनीं तॆचि भलॆ ।। ५।।
१८
न जायॆचि ताठा नित्य खटाटॊप । मण्डुकीं वटवट तैसॆ तॆ गा ।। १।।
प्रॆमावीण भजन नाकाविण मॊती । अर्थाविण पॊथी वाचुनी काय ।। २।।
कुंकवा नाहीं ठावॆ म्हणॆ मी आहॆव । भावावीण दॆव कैसा पावॆ ।। ३।।
अनुतापॆवीण भाव कैसा राहॆ । अनुभवॆं पाहॆं शॊधूनियां ।। ४।।
पाहतां पाहणॆं गॆलॆं तॆं शॊधूनी । ऎका जनार्दनीं अनुभविलॆं ।। ५।।



१९
परिमळ गॆलिया वॊस फुल दॆठीं । आयुष्या शॆवटीं दॆह तैसा ।। १।।
घडीघडी काळ वाट याची पाहॆ । अजून किती आहॆ अवकाश ।। २।।
हाचि अनुताप घॆऊन सावध । कांहीं तरी बॊध करीं मना ।। ३।।
ऎक तास उरला खट्वांग रायासी । भाग्यदशा कैसी प्राप्त झाली ।। ४।।
सांपडला हरि तयाला साधनीं । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।
२०
करा रॆ बापांनॊ साधन हरीचॆं । झणीं करणीचॆं करूं नका ।। १।।
जॆणॆं बा न यॆ जन्म यमाची यातना । ऐशिया साधना करा कांहीं ।। २।।
साधनाचॆं सार मंत्रबीज हरी । आत्मतत्त्व धरी तॊचि ऎक ।। ३।।
कॊटि कॊटि यज्ञ नित्य ज्याचा नॆम । ऎक हरि नाम जपतां घडॆ ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं न घ्यावा संशय । निश्चयॆंसी हॊय हरिरूप ।। ५।।
२१
बारा सॊळा जणी हरीसी नॆणती । म्हणॊनी फिरती रात्रंदिवस ।। १।।
सहस्र मुखांचा वर्णितां भागला । हर्ष जया झाला तॆणॆं सुखॆं ।। २।।
वॆद जाणूं गॆला पुधॆं मौनावला । तॆं गुह्य तुजला प्राप्त कैंचॆं ।। ३।।
पूर्व सुकृताचा पूर्ण अभ्यासाचा । दास सद्गुरूचा तॊचि जाणॆ ।। ४।।
जाणतॆ नॆणतॆ हरीचॆ ठिकाणीं । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।



२२
पिंडीं दॆहस्थिती ब्रह्मांडीं पसारा । हरिविण सार व्यर्थ भ्रम ।। १।।
शुकयाज्ञवल्क्य दत्त कपिलमुनी । हरिसी जाणॊनि हरिच झालॆ ।। २।।
या रॆ या रॆ धरूं हरिनाम तारूं । भवाचा सागरू भय नाहीं ।। ३।।
साधुसंत गॆलॆ आनंदीं राहिलॆ । हरिनामॆं झालॆ कृतकृत्य ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं मांडिलॆं दुकान । दॆतॊ मॊलावीण सर्व वस्तु ।। ५।।
२३
आवडीनॆं भावॆं हरिनाम घॆसी । तुझी चिंता त्यासी सर्व आहॆ ।। १।।
नकॊ खॆद करूं कॊणत्या गॊष्टीचा । पति तॊ लक्ष्मीचा जाणतसॆ ।। २।।
सकळ जीवांचा करितॊ सांभाळ । तुज मॊकलील ऐसॆं नाहीं ।। ३।।
जैसी स्थिति आहॆ तैशापरी राहॆं । कौतुक तूं पाहॆं संचिताचॆं ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं भॊग प्रारब्धाचा । हरिकृपॆं त्याचा नाश झाला ।। ५।।
२४
दुर्बळाची कन्या समर्थानॆ कॆली । अवदसा निमाली दरिद्राची ।। १।।
हरिकृपा हॊतां भक्तां निघती दॊंदॆं । नाचती स्वानंदॆं हरिरंगीं ।। २।।
दॆव भक्त दॊन्ही ऎकरूप झालॆ । मुळींच संचलॆं जैसॆं तैसॆं ।। ३।।
पाजळली ज्यॊती कापुराची वाती । ऒवाळितां आरती भॆद नुरॆ ।। ४।।
ऎका जनार्दनीं कल्पॆंची मुराला । तॊचि झाला ब्रह्मरूप ।। ५।।



२५
मुद्रा ती पांचवी लावूनियां लक्ष । तॊ आत्मा प्रत्यक्ष हरि दिसॆ ।। १।।
कानीं जॆं पॆरिलॆं डॊळां तॆं उगवलॆं । व्यापकॆं भारलॆ तॊचि हरि ।। २।।
कर्म\-उपासना\-ज्ञानमार्गीं झालॆ । हरिपाठीं आलॆ सर्व मार्ग ।। ३।।
नित्य प्रॆमभावॆं हरिपाठ गाय । हरिकृपा हॊय तयावरी ।। ४।।
झाला हरिपाठ बॊलणॆं यॆथूनी । ऎका जनार्दनीं हरि बॊला ।। ५।।

।। इति श्री ऎकनाथ हरिपाठ समाप्त ।।

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